प्रमुख हिन्दू त्योहार एवं पूजा
दुर्गा पूजा का पर्व, जिसे हम “नवरात्रि” के नाम से भी जानते हैं, हिन्दू देवी माँ दुर्गा की बुराई के प्रतीक राक्षस महिषासुर पर विजय के रूप में मनाया जाता है। यह पर्व बुराई पर भलाई की विजय के रूप में भी माना जाता है। नवरात्रि एक महत्वपूर्ण प्रमुख त्योहार है, जिसे पूरे भारत में महान उत्साह के साथ मनाया जाता है।
“नवरात्रि” एक महत्वपूर्ण हिन्दू पर्व है। “नवरात्रि” का अर्थ है “नौ रातें”। इन नौ रातों और दस दिनों के दौरान माँ दुर्गा के नौ रूपों का वर्णन एवं पूजा की जाती है। “दुर्गा” का अर्थ है ‘जीवन के दुख को हटाने वाली’।
माँ दुर्गा के नौ रूपों के बारे में विस्तार से
प्रथम दिन: माँ शैलपुत्री
नवरात्रि के पहले दिन माँ शैलपुत्री की पूजा-अर्चना की जाती है। पहले स्वरूप में ‘शैलपुत्री’ के नाम से जानी जाती हैं। ये ही नवदेवियों में प्रथम दुर्गा हैं। नवरात्रि पूजन में प्रथम दिन इन्हीं की पूजा और उपासना की जाती है। यहीं से उनकी योग साधना का प्रारंभ होता है।
दूसरा दिन: माँ ब्रह्मचारिणी
नवरात्रि पर्व के दूसरे दिन माँ ब्रह्मचारिणी की पूजा-अर्चना की जाती है। ब्रह्म का अर्थ है तपस्या और चारिणी यानी आचरण करने वाली। इस प्रकार ब्रह्मचारिणी का अर्थ हुआ तप का आचरण करने वाली। इनके दाहिने हाथ में जप की माला एवं बाएँ हाथ में कमण्डल रहता है।
तीसरा दिन: माँ चंद्रघंटा
माँ दुर्गाजी की तीसरी शक्ति का नाम चंद्रघंटा है। नवरात्रि उपासना में तीसरे दिन की पूजा का अत्यधिक महत्व है और इस दिन इन्हीं के विग्रह का पूजन-आराधना किया जाता है। माँ का यह स्वरूप परम शांतिदायक और कल्याणकारी है। इनके मस्तक में घंटे का आकार का अर्धचंद्र है, इसी कारण से इन्हें चंद्रघंटा देवी कहा जाता है।
चौथा दिन: माँ कूष्मांडा
नवरात्रि पर्व के चौथे दिन माँ भगवती के इस स्वरूप की आराधना की जाती है। ऐसी मान्यता है कि इनकी हँसी से ही ब्रह्माण्ड उत्पन्न हुआ था। अष्टभुजी माता कूष्मांडा के हाथों में कमंडल, धनुष-बाण, कमल, अमृत-कलश, चक्र तथा गदा है।
पाँचवाँ दिन: माँ स्कंदमाता
नवरात्रि पर्व की पंचमी तिथि को भगवती के पाँचवें स्वरूप स्कंदमाता की पूजा की जाती है। देवी के एक पुत्र कुमार कार्तिकेय (स्कंद) हैं, जिन्हें देवासुर-संग्राम में देवताओं का सेनापति बनाया गया था। इस रूप में देवी अपने पुत्र स्कंद को गोद में लिए बैठी होती हैं। स्कंदमाता अपने भक्तों को शौर्य प्रदान करती हैं।
छठा दिन: माँ कात्यायनी
कात्यायन ऋषि की घोर तपस्या से प्रसन्न होकर भगवती उनके यहाँ पुत्री के रूप में प्रकट हुई और कात्यायनी कहलाई। कात्यायनी का अवतरण महिषासुर वध के लिए हुआ था। यह देवी अमोघ फलदायिनी हैं। भगवान कृष्ण को पति के रूप में पाने के लिए ब्रज की गोपियों ने देवी कात्यायनी की आराधना की थी। जिन लड़कियों की शादी न हो रही हो या उसमें बाधा आ रही हो, वे कात्यायनी माता की उपासना करें।
सातवाँ दिन: माँ कालरात्रि
नवरात्रि पर्व के सातवें दिन सप्तमी को कालरात्रि की आराधना का विधान है। यह भगवती का विकराल रूप है। गर्दभ (गधे) पर आरूढ़ यह देवी अपने हाथों में लोहे का काँटा तथा कटार भी लिए हुए हैं। इनके भयानक स्वरूप को देखकर विध्वंसक शक्तियाँ पलायन कर जाती हैं।
आठवाँ दिन: माँ महागौरी
नवरात्रि पर्व की अष्टमी को महागौरी की आराधना का विधान है। यह भगवती का सौम्य रूप है। यह चतुर्भुजी माता वृषभ पर विराजमान हैं। इनके दो हाथों में त्रिशूल और डमरू है। अन्य दो हाथों द्वारा वर और अभय दान प्रदान कर रही हैं। भगवान शंकर को पति के रूप में पाने के लिए भवानी ने अति कठोर तपस्या की, तब उनका रंग काला पड़ गया था। तब शिव जी ने गंगाजल द्वारा इनका अभिषेक किया, तो यह गौरवर्ण की हो गई। इसीलिए इन्हें गौरी कहा जाता है।
नौवाँ दिन: माँ सिद्धिदात्री
नवरात्रि पर्व के अंतिम दिन नवमी को भगवती के सिद्धिदात्री स्वरूप का पूजन किया जाता है। इनकी अनुकंपा से ही समस्त सिद्धियाँ प्राप्त होती हैं। अन्य देवी-देवता भी मनोवांछित सिद्धियों की प्राप्ति की कामना से इनकी आराधना करते हैं। माँ सिद्धिदात्री चतुर्भुजी हैं। अपनी चारों भुजाओं में वे शंख, चक्र, गदा और पद्म (कमल) धारण किए हुए हैं। कुछ धर्मग्रंथों में इनका वाहन सिंह बताया गया है, परंतु माता अपने लोकप्रचलित रूप में कमल पर बैठी (पद्मासना) दिखाई देती हैं। सिद्धिदात्री की पूजा से नवरात्रि में नवदुर्गा पूजा का अनुष्ठान पूर्ण हो जाता है।
नवरात्रि उत्सव
नवरात्रि उत्सव के समय भक्त दिन में फल या केवल पानी पीकर उपवास करते हैं। भारत में नवरात्रि के कई रंग और रूप देखने को मिलते हैं। नवरात्रि पर कुछ जगहों पर दशहरा पर्व की शुरुआत भी मानी जाती है। नवरात्रि का त्योहार भारत में बहुत ही धूमधाम से मनाया जाता है।
नवरात्रि 9 दिनों का एक बड़ा उत्सव है, जिसमें देवी दुर्गा की पूजा-अर्चना बहुत ही उत्साह के साथ की जाती है। भारत में नवरात्रि का त्योहार 9 से 10 दिनों तक बहुत बड़े तौर पर मनाया जाता है। नवरात्रि त्योहार के अंतिम दिन विजयदशमी या दशहरा का उत्सव मनाया जाता है। रामायण के अनुसार, इसी दिन भगवान श्रीराम ने रावण का वध किया था।
दक्षिण भारत में कई जगहों पर नवरात्रि के नौवें दिन ‘कन्यापूजन’ भी किया जाता है। इस पूजा में 9 छोटी लड़कियों को देवी माँ के नौ रूप मानकर उनकी पूजा की जाती है और साथ ही उन्हें हलवा, पूरी, मिठाइयाँ, खाने को दिया जाता है।
नवरात्रि के समय ही माँ दुर्गा ने राक्षस महिषासुर का वध किया था। महिषासुर ने भगवान शिव की कठोर उपासना करके उनसे कुछ शक्तियाँ माँग ली थीं। इन्हीं शक्तियों की वजह से स्वयं ब्रह्मा, विष्णु, महेश भी उसे मारने में सक्षम नहीं थे। महिषासुर ने सभी देवताओं को भयभीत कर रखा था। इसलिए सभी देवता तब ब्रह्मा, विष्णु, महेश के पास गए और महिषासुर से मुक्ति की कामना की।
तब सभी देवताओं ने अपनी शक्ति को मिलाकर एक नयी शक्ति को जन्म दिया, जिसे माँ दुर्गा का नाम दिया गया। माँ दुर्गा के अनेक नाम हैं, जिनमें “शक्ति” भी इनका एक नाम है।
माँ दुर्गा ने महिषासुर का वध करके देवताओं को राक्षसों के प्रकोप से मुक्ति दिलाई। तभी से माँ दुर्गा की पूजा का प्रचलन है।
मूर्ति का विसर्जन
पूजा के बाद लोग पवित्र जल में देवी की मूर्ति के विसर्जन के समारोह का आयोजन करते हैं। भक्त अपने घरों को उदास चेहरों के साथ लौटते हैं और माता से फिर से अगले साल बहुत से आशीर्वादों के साथ आने की प्रार्थना करते हैं।