भारत की सभ्यता सबसे प्राचीन और प्रसिद्ध है। भारत की प्रसिद्धियों के बारे में बहुत सारे ग्रंथों और पुराणों में लिखा गया है। कहा जाता है कि अपना इंडिया देवताओं का जन्म भूमि है तो जरूर उन देवी-देवताओं का पूजनीय स्थल यानी मंदिर भी अपने भारत में ही होंगे। वैसे अपना भारत बहुत सारे धर्मों से भरा पड़ा है जैसे हिंदू धर्म, बौद्ध धर्म, जैन धर्म, इस्लाम धर्म और सिख धर्म सहित और विश्व के कई धर्मों के लोग यहाँ निवास करते हैं।
सबके अपने-अपने धार्मिक स्थल हैं। यहाँ पर हिन्दू धर्म पूजनीय माना गया है। हिन्दू धर्म के कई सारे मंदिर भारत में हैं। कई दशकों से अलग-अलग देवी-देवताओं की मूर्तियों को पूजा जा रहा है। उनके कर्मों को सराहा जा रहा है।
मंदिरों के विशेष उनके विस्तृत वास्तुकला और समृद्ध इतिहास को लेकर सम्पूर्ण संसार में चर्चा का विषय रहा है। हमारी संस्कृति, आत्मविश्वास, आध्यात्मिकता, वास्तुकलाएँ, पुरुषार्थ, वीरता, प्रेम और सभ्यताओं के सौंदर्य को प्रदर्शित करने वाले हजारों की संख्या में मंदिरों का गुणगान है।
लेकिन आज मैं आपको भारत के प्रसिद्ध मंदिरों के बारे में बताऊँगा और उनके स्थापना एवं संस्थापक की जानकारी भी इस पोस्ट के माध्यम से प्रदान करूँगा।
1. श्री राम मंदिर, अयोध्या
धामों में धाम अयोध्या धाम, पुरुषोत्तम भगवान श्री राम चन्द्र जी का पूज्य जन्म स्थल अ JC्योध्या में उनके भव्य मंदिर का निर्माण किया जा रहा है यानी राम मंदिर बनने की तैयारियाँ शुरू हैं। मैंने इसे सर्वप्रथम इसलिए रखा कि यह धर्म व जमीन के विवादों से घिरा हुआ था।
लेकिन जल्द ही सुप्रीम कोर्ट ने 9 नवम्बर 2019 को फैसला सुनाया और हिन्दू धर्म में श्री राम को बहुत ही बड़ा महत्व का दर्जा दिया गया है यही कारण से हमने इसे सबसे पहले रखा। वैसे यह हिन्दू-मुस्लिम विवाद से जुड़ा था। इसकी स्थापना सन 1991 में राजीव गांधी के सरकार कार्यकाल में रोक दिया गया था।
राम मंदिर और बाबरी मस्जिद दोनों के होने के दावे एक ही जगह पर अलग-अलग धर्मों के लोगों से बताया जा रहा था, अपितु सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद सब साफ हो गया। अब इसका पुनर्निर्माण उत्तर प्रदेश के माननीय मुख्यमंत्री श्री योगी आदित्यनाथ (अजय सिंह) द्वारा 25 मई को भूमि पूजन के रूप में किया गया है। आगे चलकर यह एक भव्य मंदिर बनेगा और लोगों के लिए दर्शन और पर्यटन स्थल का महत्वपूर्ण जगह बन जाएगा।
सदियों की प्रतीक्षा के बाद अयोध्या में भगवान श्रीराम का भव्य मंदिर आज हकीकत बन चुका है। सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले (9 नवंबर 2019) के बाद 5 अगस्त 2020 को भूमि पूजन हुआ, और 22 जनवरी 2024 को श्रीराम लला की प्रतिमा का प्राण प्रतिष्ठा संयोजित हुआ, जिसमें लाखों श्रद्धालुओं की भावनाएँ जुड़ गईं।
अब मंदिर परिसर लगभग तैयार है और हजारों भक्त रोज़ दर्शन के लिए आते हैं। श्रीराम मंदिर सिर्फ पूजा का स्थान नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति, एकजुटता और आस्था का ऐतिहासिक प्रतीक बन चुका है। 2025 में जब पूरा निर्माण सम्पन्न होगा, यह स्थल पूरे देश के लिए गर्व और श्रद्धा की नई पहचान बनेगा।
स्थापित देवता: श्री राम
स्थान: अयोध्या, उत्तर प्रदेश
स्थापक: योगी आदित्यनाथ
स्थापित समय: 25 मई 2020
2. श्री वैष्णो देवी मंदिर, जम्मू
वैसे तो भारतीय व्यक्ति को माँ वैष्णो देवी के मंदिर का परिचय नहीं कराना पड़ेगा, बल्कि देश-विदेश के लोगों के लिए यह एक पर्यटन स्थल भी है। यहाँ लोग भारी तादाद में आते हैं। यह मंदिर समुद्र तल से 15 किलोमीटर ऊँचाई पर त्रिकुटा नामक पर्वत पर बसा है।
यह मंदिर 108 शक्तिपीठों में से एक है जिससे तक़रीबन 13 किलोमीटर दूर से पैदल रास्ता तय करते हुए श्रद्धालु को एक छोटे से गुफा तक जाना पड़ता है। वैष्णो देवी को माता रानी के नाम से लोग संबोधित करते हैं। लोग पैदल यात्रा करते हुए एक बड़े ही मनमोहक नारे के साथ आगे बढ़ते हैं: चलो बुलावा आया है माता रानी ने बुलाया है।
हिन्दू कथा पुराणों के द्वारा पता चलता है कि भगवान विष्णु के आदेशनुसार माँ लक्ष्मी, माँ सरस्वती और माँ पार्वती के शक्ति से उत्पन्न हुई इस देवी को वैष्णो नाम दिया गया। माता रानी ने भैरव नाम के घोर अत्याचारी राक्षस का वध किया था और उसका गला काटने के बाद उसने माँ कहकर हजारों बार माता रानी को संबोधित किया और माता ने उसे आशीर्वाद दिया कि तुम्हारी पूजा के बिना मेरी पूजा और दर्शन अधूरा रहेगा।
स्थापित देवी: माता वैष्णो देवी
स्थान: त्रिकुटा, जम्मू
स्थापक: पंडित श्रीधर
स्थापित समय: 1300 ई.पू.
3. तिरुपति बालाजी मंदिर, तिरुपति
आपको जानकर आश्चर्य होगा कि यह मंदिर दुनिया के सबसे अमीर मंदिरों में से एक है। विश्व का सबसे प्रसिद्ध धार्मिक स्थल तिरुपति बालाजी तिरुमाला नामक पहाड़ियों के बीच बसा हुआ है। श्री वेंकटेश्वर के नाम से भी इस मंदिर को लोग जानते हैं। माना जाता है कि यह सात चोटियों से घिरा अद्भुत स्थल भगवान आदिशेष के सात सिरों का प्रतिनिधित्व करता है।
इसकी सातवीं चोटी वेंकटाद्री नाम से जानी जाती है, यही कारण है कि इस मंदिर को वेंकटेश्वर के नाम से भी लोग जानते हैं। कहा जाता है कि मंदिर में भगवान वेंकटेश्वर स्वामी की मूर्ति पर लगे बाल असली हैं, जो हमेशा मुलायम रहते हैं। देवस्थानम नामक एक विशेष मार्ग बनाया गया है जिससे पैदल यात्रियों को जाने में आसानी होती है।
कहा जाता है कि दर्शनार्थी की मनोकामना पूरी होती है तो वह अपने बालों को बालाजी में समर्पित करता है तथा भारी मात्रा में लोग यहाँ अपनी श्रद्धा के हिसाब से सोना-चाँदी भी भगवान के श्री चरणों में समर्पित करते हैं। इस मंदिर की ऊँचाई 853 मीटर है। मंदिर के मुख्य द्वार को गोपुरम नाम से जाना जाता है।
स्थापित देवता: श्री वेंकटेश्वर (विष्णु)
स्थान: चित्तूर, आंध्र प्रदेश
स्थापक: अज्ञात
स्थापित समय: युगों उपरांत
4. काशी विश्वनाथ मंदिर, वाराणसी
भगवान भोलेनाथ का प्रिय स्थान वाराणसी में स्थित काशी विश्वनाथ मंदिर जो पवित्र गंगा के पश्चिम तट पर स्थित है। यह हिन्दू धर्म में भगवान शिव का सबसे लोकप्रिय मंदिर माना जाता है। वाराणसी के मध्य स्थित काशी विश्वनाथ मंदिर लाखों हिन्दुओं के श्रद्धा का केंद्र है।
सम्पूर्ण ज्योतिर्लिंगों में से भगवान शिव का यह 12वाँ ज्योतिर्लिंग है, जिन्हें विश्वनाथ या विश्वेश्वर के नाम से परिचित किया गया। कहा जाता है कि काशी नरेश महाशिवरात्रि के दिन यहाँ पूजा-अर्चना करने आते हैं और उस समयकाल में किसी और का मंदिर में प्रवेश वर्जित कर दिया जाता है।
इस मंदिर के अंतर्गत अविमुक्तेश्वर, विष्णु, गौरी, विरुपक्ष, विनायक और कालभैरव के भी मंदिर स्थापित हैं। लोगों की मान्यता है कि मृत व्यक्ति की अस्थियाँ अगर काशी की गंगा में प्रवाहित की जाएँ तो उनकी आत्मा को शांति मिलती है और वो परम वैकुण्ठ को प्राप्त करते हैं। यहाँ भारी मात्रा में पण्डे अपना मठ बनाकर रहते हैं और श्राद्ध आदि करते हैं।
स्थापित देवता: भगवान शिव
स्थान: वाराणसी, उत्तर प्रदेश
स्थापक: मराठा शासक, इंदौर की अहिल्या बाई होल्कर
स्थापित समय: 1780
5. स्वर्ण मंदिर, अमृतसर
भारतीय इतिहास के सबसे आध्यात्मिक स्थानों में से एक है यह गोल्डन टेम्पल। इस स्वर्ण मंदिर को हरमिंदर साहब के नाम से जाना जाता है। विध्वंस के मार से गुजरने के पश्चात, 1830 में महाराजा रणजीत सिंह के नेतृत्व में यह बनाया गया।
इसे बनाने के लिए सोना तथा संगमरमर के पत्थरों का प्रयोग किया गया। सिख धर्म में विशेष धार्मिक स्थल है अमृतसर का स्वर्ण मंदिर। इस स्वर्ण मंदिर के अंदर एक तालाब है जिसकी एक अलग ही मान्यता है। यहाँ देश-विदेश से लोग घूमने आते हैं। इस मंदिर की एक और खास बात है, यहाँ रोज लाखों लोगों को मुफ्त में भोजन कराया जाता है, जिसमें रोटी और घी का बड़ा महत्व होता है और इसे भारी मात्रा में उपलब्ध कराया जाता है।
स्थापित व्यक्तित्व: हरमिंदर साहब
स्थान: अमृतसर, पंजाब
स्थापक: महाराजा रणजीत सिंह
स्थापित समय: 1830
6. अमरनाथ गुफा मंदिर, जम्मू-कश्मीर
बाबा बर्फानी के भक्तों के लिए यह दर्शन स्थल विशेष रूप का महत्व देता है भारत में। दुनिया भर के श्रद्धालु इस अमरनाथ यात्रा में शामिल होकर यहाँ जम्मू-कश्मीर में स्थित अमरनाथ गुफा में आते हैं। श्रीनगर से 141 किमी दूर तथा 3888 मीटर ऊँचाई पर स्थित यह अमरनाथ मंदिर विश्व स्तर पर प्रसिद्ध हो चुका है।
इस गुफा की ऊँचाई 19 मीटर और चौड़ाई 16 मीटर है। सम्पूर्ण साल यह गुफा बर्फ से ढकी रहती है। कहा जाता है कि सावन के महीने में यहाँ बर्फ का शिवलिंग स्वयं उत्पन्न होता है या बनता है। उसी शिवलिंग का दर्शन करने लोग लाखों की संख्या में आते हैं। लोग अपने साथ कवर लाते हैं और उसमें गंगा जल भर लेते हैं जो शिव को अर्पित करते हैं।
लोगों का मानना है कि तीर्थों में तीर्थ अमरनाथ है। हिन्दू पुराण और ग्रंथों की मानें तो ऐसा कहा जाता है कि भगवान शिव जी ने माता पार्वती को यहीं पर जीवन और मृत्यु के बारे में कथा सुनाई थी जिसे शुकदेव ने पूर्व जन्म में तोते के रूप में सुन लिया था।
स्थापित देवता: बाबा बर्फानी (भगवान शिव)
स्थान: श्रीनगर, जम्मू-कश्मीर
स्थापक: अज्ञात
स्थापित समय: युगों उपरांत
7. केदारनाथ मंदिर, उत्तराखण्ड
केदारनाथ का मंदिर भी भगवान भोलेनाथ का ही मंदिर है। रुद्रप्रयाग जनपद में स्थित हिमालय के गढ़वाल पर्वतमाला पर स्थित केदारनाथ धाम, हिन्दू के पवित्र धामों में पूजनीय है। भगवान भोलेनाथ के 12वें ज्योतिर्लिंगों में से सबसे ऊँचा ज्योतिर्लिंग है।
भगवान भोलेनाथ का मंदिर 3583 मीटर ऊँचाई के पर्वत श्रृंखला पर स्थापित है। इसमें गंगोत्री, यमुनोत्री और केदारनाथ के अलावा छोटा चार धाम में भी शामिल किया गया है। इस मंदिर का निर्माण राक्षसों के कुल गुरु शंकराचार्य द्वारा किया गया था। यह पांडवों द्वारा स्थापित किया गया था जो उस समय वहाँ के मूल निवासी हुआ करते थे।
बर्फीली चमकती पहाड़ों से घिरा हुआ यह केदारनाथ मंदिर आध्यात्मिक सुंदरता को चार चाँद लगा देता है। यहाँ के पहाड़ी ढलानों पर लोग चढ़ाई करके दर्शन करने जाते हैं। यहाँ यात्रा के लिए किराए पर पहाड़ी घोड़े भी इस्तेमाल में लाए जाते हैं।
स्थापित देवता: भगवान शिव
स्थान: रुद्रप्रयाग, उत्तराखण्ड
स्थापक: पाण्डव वंश के जनमेजय आदि शंकराचार्य
स्थापित समय: 8वीं शताब्दी
8. बद्रीनाथ मंदिर, उत्तराखण्ड
उत्तराखण्ड के चमोली जनपद में अलकनंदा नदी के तट पर स्थित बद्रीनाथ मंदिर, हिन्दू पूज्य स्थल है। गढ़वाल पहाड़ी पर स्थित यह एक विष्णु मंदिर है। यह मंदिर समुद्रतट से 3133 मीटर ऊँचाई पर स्थित है। ठंडक के मौसम में हिमालयी क्षेत्र की रूक्ष मौसमी दशाओं के कारण मंदिर वर्ष के छह महीनों (अप्रैल के अंत से लेकर नवंबर की शुरुआत तक) की सीमित अवधि के लिए ही खुला रहता है।
बद्रीनाथ के इस मंदिर में भगवान विष्णु के अवतार बद्रीनारायण जी को पूजा जाता है। भगवान बद्रीनाथ की मूर्ति शालिग्राम से बनी है जो 1 मीटर से भी लंबी है। 7वीं शताब्दी में आदि गुरु शंकराचार्य ने नारद कुंड से निकालकर इसकी स्थापना की थी। ऋषिकेश से उत्तर दिशा में 174 किलोमीटर की दूरी पर यह मंदिर स्थित है।
स्थापित देवता: भगवान बद्रीनारायण
स्थान: चमोली, उत्तराखण्ड
स्थापक: आदि गुरु शंकराचार्य
स्थापित समय: 7वीं शताब्दी
9. श्री जगन्नाथ पुरी मंदिर, पुरी
भारत के पुरी नामक शहर में स्थित है यह पवित्र मंदिर जगन्नाथ पुरी। महाराजा इंद्रद्युम्न के नेतृत्व में यह मंदिर 11वीं शताब्दी में निर्मित किया गया। भगवान श्री जगन्नाथ जी श्री हरि विष्णु जी के ही अवतार थे। हिन्दू धर्म के चारों धामों में इसकी भी मान्यता है जिसमें बद्रीनाथ, द्वारका और रामेश्वरम के साथ-साथ इसकी भी गणना की जाती है।
यह हिन्दुओं के पवित्र स्थलों में बहुत ही लुभावना और विदेशी पर्यटन स्थल के लिए भी मशहूर है। यहाँ भगवान श्री जगन्नाथ जी की रथयात्रा बड़ी ही धूमधाम से निकाली जाती है। रथ यात्रा के दौरान यात्रियों को माहौल बहुत रंगीन और उत्साह भरा हो जाता है। पूरा पुरी हर्षोल्लास से प्रफुल्लित हो जाता है। आपको बता दें कि श्री कृष्ण को ही जगन्नाथ भगवान कहा जाता है।
स्थापित देवता: भगवान जगन्नाथ (श्रीकृष्ण)
स्थान: पुरी, उड़ीसा
स्थापक या पुनर्निर्माता: गंगा वंश के राजा अनंतवर्मन चोडगंगा
स्थापित समय: 12वीं शताब्दी
10. महाकालेश्वर मंदिर, उज्जैन
देवों के देव महादेव की महिमा का एक और बखान मध्य प्रदेश के उज्जैन नामक प्राचीन शहर में स्थित रुद्र सागर झील के समीप यह मंदिर बना हुआ है। भगवान भोलेनाथ के 12 ज्योतिर्लिंगों में से यह भी एक है। यहाँ मंदिर में भस्म आरती और अनुष्ठान जैसे कई समारोह किए जाते हैं।
यहाँ प्रत्येक वर्ष कई धार्मिक त्योहार और मेले का उत्सव किया जाता है, जिसे देखने के लिए बहुत दूर-दूर से लोग आते हैं। कहा जाता है कि महाकवि कालिदास ने मेघदूत को उद्गम करते हुए इस मंदिर की बहुत प्रशंसा की थी। मराठों के शासनकाल में यहाँ दो प्रकार की महत्वपूर्ण घटनाएँ घटी थीं – पहला, महाकालेश्वर मंदिर का पुनर्निर्माण हुआ था और दूसरा, ज्योतिर्लिंग की पुनर्प्रतिष्ठा की गयी थी तथा सिंहस्थ पर्व स्नान की स्थापना भी हुई थी, जो एक बहुत बड़ी उपलब्धि थी।
स्थापित देवता: भगवान शिव
स्थान: उज्जैन, मध्यप्रदेश
स्थापक: स्वयंभू; जीर्णोद्धारक उज्जैन शासक/मराठा+राजा भोज
स्थापित समय: अति प्राचीन
11. सोमनाथ मंदिर, गुजरात
सोमनाथ मंदिर का इतिहास बहुत प्राचीन और ऐतिहासिक है। सोमनाथ मंदिर हिन्दुओं के महत्वपूर्ण मंदिरों में से एक है। सोमनाथ मंदिर में भगवान शिव शंकर के शिवलिंग की पूजा की जाती है। सोमनाथ गुजरात के सौराष्ट्र जिले के वेरावल नामक बंदरगाह स्थान पर स्थित है। सोमनाथ मंदिर विश्व के प्रसिद्ध धार्मिक तथा पर्यटन स्थलों में से एक है।
सोमनाथ मंदिर आज भी भारत के 12 ज्योतिर्लिंगों में सर्वप्रथम ज्योतिर्लिंग में से एक माना जाता है। सोमनाथ मंदिर हिन्दू धर्म के उत्थान-पतन का सबसे बड़ा प्रतीक रहा है। सोमनाथ मंदिर कई बार टूटा और कई बार इसका पुनर्निर्माण किया गया है। वर्तमान समय में जो मंदिर (सोमनाथ) है, इसका पुनर्निर्माण भारत की स्वतंत्रता के पश्चात सरदार वल्लभभाई पटेल द्वारा करवाया गया था।
स्थापित देवता: भगवान शिव
स्थान: सौराष्ट्र, गुजरात
स्थापक: अज्ञात
स्थापित समय: अति प्राचीन
12. बैद्यनाथ धाम मंदिर, देवघर
भगवान भोलेनाथ के मंदिर बैद्यनाथ मंदिर को बैद्यनाथ धाम के नाम से भी संबोधित किया जाता है। भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में भगवान शिव का सबसे प्रिय स्थान माना जाता है बैद्यनाथ धाम। संथाल परगना विभाग के देवघर, झारखण्ड राज्य में स्थित है। हिन्दू ग्रंथों में भी इस मंदिर का काफी विस्तार से उल्लेख किया गया है।
हमारे रामायण की अगर मानें तो कहा जाता है कि लंका का राजा रावण यहाँ अपनी पूजा करता था। बड़ा ही दिलचस्प कथा है इस मंदिर का, कहा जाता है कि एक बार रावण ने भगवान शंकर की पूजा करके उन्हें खुश कर दिया और उन्हें अपने लंका लोक ले जाने का आग्रह किया। भगवान उसकी पूजा से खुश थे इसलिए उन्होंने अपना शिवलिंग दे दिया और साथ में एक चेतावनी भी दी कि अगर रास्ते में तुम कहीं भी इस ज्योतिर्लिंग को रख दोगे तो वह वहीं पर स्थापित हो जाएगा।
रावण मान गया और ज्योतिर्लिंग को लेकर चल दिया। रावण को रास्ते में लघुशंका की तलब लगी और वह अपने विमान से नीचे उतरा, उसने देखा कि वहाँ एक ग्वाला गाय चरा रहा था। रावण ने उससे ज्योतिर्लिंग देकर कुछ समय के लिए रुकने को बोला। उसी ग्वाले का नाम बैजू था। बैजू ज्योतिर्लिंग लिए-लिए थक गया और मजबूर होकर रख दिया, उसी समय रावण आ गया और देखकर बहुत दुखी हुआ फिर ज्योतिर्लिंग को वहीं छोड़कर चल गया।
अब बैजू मरे दुख के रोजाना वहाँ आता और ज्योतिर्लिंग को दो-चार डंडे लगाकर जाता। इसी प्रकार वह अपना गुस्सा रोजाना व्यक्त करता था। एक दिन की बात है बैजू भूल गया था लेकिन जब वह खाने बैठा तो उसे याद आया और अपना भोजन छोड़कर डंडे लगाने आ गया ज्योतिर्लिंग को, जिससे भगवान भोलेनाथ खुश होकर उसे वरदान दिया और कहा कि आज से इस जगह का नाम तुम्हारे नाम से जाना जाएगा। तभी से उस जगह का नाम बैद्यनाथ धाम से जाना जाता है।
स्थापित देवता: बैद्यनाथ (भगवान शिव)
स्थान: देवघर, झारखण्ड
स्थापक: बैजू ग्वाला
स्थापित समय: अति प्राचीन
13. सिद्धि विनायक मंदिर, मुंबई
सिद्धि विनायक मंदिर भारत के उन प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है जो काफी नामी और चर्चित है। यह मंदिर महाराष्ट्र राज्य की राजधानी मुंबई के दादर नामक शहर में स्थित है। सिद्धि विनायक मंदिर में भगवान श्री गणेश की पूजा होती है।
जिन प्रतिमाओं या मूर्तियों में भगवान श्री गणेश जी की सूंड दायीं तरफ मुड़ी हो, वे मूर्तियाँ सिद्धिपीठ से जुड़ी हुई होती हैं और वे मंदिर सिद्धि विनायक मंदिर के नाम से जाने जाते हैं या पहचाने जाते हैं। सिद्धि विनायक मंदिर जाने वाले भक्तों का कहना है कि वहाँ जाने से मन को शांति मिलती है और वहाँ पर कोई मन्नत मांगने पर वो माँगा हुआ मन्नत अति कम समय में पूर्ण हो जाता है।
सिद्धि विनायक मंदिर के अंदर एक छोटे से मंडप में श्री गणेश जी की मूर्ति स्थापित हुई है। सिद्धि विनायक मंदिर में गणपति जी का दर्शन करने के लिए देश के कोने-कोने से अनेक धर्म-जाति के लोग आते हैं।
स्थापित देवता: श्री गणेश
स्थान: मुंबई (दादर), महाराष्ट्र
स्थापक: बिट्ठू और देउबाई
स्थापित समय: सन 1801 ई०
14. श्री साईं बाबा मंदिर, शिरडी
सबसे पहले हम बात करेंगे श्री साईं बाबा मंदिर कहाँ है? यह मंदिर महाराष्ट्र राज्य के अहमदनगर जिले के शिरडी नामक शहर में स्थित है। श्री साईं बाबा मंदिर भारत के प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है। इसकी ख्याति भारत देश के कोने-कोने में फैली हुई है।
साईं बाबा का पूरा जीवनकाल शिरडी में ही व्यतीत हुआ और साईं बाबा ने अपने जीवनोपरांत कई कल्याणकारी कार्य किए और कहा जाता है कि साईं बाबा एक साधारण आदमी ही थे। लेकिन साईं बाबा के अंदर वो सभी गुण विद्यमान थे जो हमारे प्रभु श्री राम, श्री हरि विष्णु आदि देवताओं के अंदर विद्यमान थे।
इस वजह से हम और हमारे देश के हिन्दू धर्म के लोग साईं बाबा को भगवान का एक रूप मानते हैं और इनकी पूजा करते हैं। वैसे यह एक इस्लामिक धर्म से थे लेकिन इनके कर्म और उपदेश केवल मानव हित के लिए हुआ करते थे। बाबा जी किसी भी धर्म को बढ़ावा नहीं देते थे और न किसी का अपमान करते थे। इसका एक प्रसिद्ध तकियाकलाम था “सबका मालिक एक”।
स्थापित देवता: श्री साईं बाबा
स्थान: शिरडी, महाराष्ट्र
स्थापक: धर्मप्रसाद अग्रवाल
स्थापित समय: सन 1922 ई०
15. श्री रामेश्वरम मंदिर, तमिलनाडु
रामेश्वरम मंदिर भारत के तमिलनाडु राज्य के रामनाथपुरम जिले में स्थित है। रामेश्वरम मंदिर का निर्माण लंका के राजा परम वीर, परमबाहु जीर्णोद्धारक (रामनाथपुरम के राजा) उडैयान सेतुपति ने निर्मित करवाया था। रामेश्वरम मंदिर में भगवान शिव की पूजा होती है जो प्रभु श्री राम ने स्थापित किए थे।
श्री रामेश्वरम मंदिर हिन्द महासागर और बंगाल की खाड़ी से चारों ओर से घिरा हुआ है और यह मंदिर हिन्द महासागर और बंगाल की खाड़ी से चारों ओर से घिरे होने के कारण यह मंदिर एक टापू पर बसा या स्थित हुआ दिखाई देता है। यहाँ का दृश्य देखने में लुभावना और मनमोहक लगता है। लंका पर चढ़ाई करने के लिए भगवान श्री राम ने सेतु का निर्माण करवाया और लंका के राजा को हराकर विजय प्राप्त की।
फिर बाद में श्री राम ने विभीषण के अनुरोध पर धनुषकोटि नामक स्थान पर यह सेतु को तोड़ दिया था। आज भी इस 30 मील (48 कि.मी.) लंबे आदि-सेतु के अवशेष सागर में दिखाई देते हैं। यहाँ के मंदिर के तीसरे प्रकार का गलियारा दुनिया का सबसे लंबा गलियारा है। रामेश्वरम मंदिर हिन्दू धर्म के चार धाम तीर्थ में से एक है। यह मंदिर लगभग 6 (छह) हेक्टेयर भू-भाग में फैला हुआ है। इस मंदिर का प्रमुख द्वार लगभग 39 मीटर ऊँचाई तक बना हुआ है। कहा जाता है “रामेश्वरम अर्थात राम के ईश्वर”।
स्थापित देवता: भगवान शिव
स्थान: तमिलनाडु, रामनाथपुरम
स्थापक: राजा उडैयान सेतुपति
स्थापित समय: 1173 ई०
16. दिलवाड़ा मंदिर, माउंट आबू
वास्तुपाल तेजपाल द्वारा 11वीं से 13वीं शताब्दी में निर्मित दिलवाड़ा मंदिर अरावली पहाड़ियों के बीच स्थित भव्य सुंदरता को उजागर करता है। नक्काशी के जटिल पत्थरों और संगमरमर से बना यह मंदिर अपनी बनावट के द्वारा चर्चा में हमेशा से रहा है।
मानें तो दिलवाड़ा मंदिर पाँच भागों से जुड़ा हुआ है। जैसे भगवान महावीर स्वामी, भगवान ऋषभदेव, भगवान पार्श्वनाथ, भगवान आदिनाथ और भगवान नेमिनाथ जी के पड़ाव निम्न हैं। कहा जाता है कि सुंदरता मनमोहक और जादू से प्रफुल्लित है जो लोगों को वहीं रुकने के लिए मजबूर कर देता है। इस मंदिर में आदिनाथ की मूर्ति में उनकी दोनों आँखें हीरे की लगी हैं और मूर्ति के गले में मूल्यवान हार है। वैसे यह एक जैन मंदिर है।
स्थापित देवता: दिलवाड़ा
स्थान: राजस्थान, सिरोही जिले के माउंट आबू
स्थापक: विमल शाह, वास्तुपाल तेजपाल
स्थापित समय: 13वीं शताब्दी
17. सूर्य मंदिर, कोणार्क
सूर्य मंदिर भारत के उड़ीसा राज्य के जगन्नाथ पुरी जिले के कोणार्क नामक शहर के चंद्रभागा नदी के तट पर स्थित है। सूर्य मंदिर में सूर्य देवता की पूजा होती है। सूर्य मंदिर भारत के दस सबसे बड़े मंदिरों में से एक है। कलयुग में सूर्य ही एक ऐसे देवता हैं।
जिनको हम साक्षात् रूप में देख भी सकते हैं और इनकी पूजा भी करते हैं या कर सकते हैं। सूर्य भगवान की पूजा रविवार के दिन की जाती है। सूर्य देवता की पूजा करने से सभी मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं। कहा जाता है कि उगते हुए भगवान सूर्य की पूजा करने से अत्यंत उन्नतिकारक माना गया है।
सुबह के समय उगते हुए सूर्य के दर्शन करने से शरीर में उत्पन्न विकार (रोग) खत्म हो जाते हैं और शरीर स्वस्थ हो जाता है। ज्योतिषों में भगवान सूर्य देव को सभी ग्रहों में राजा माना गया है। कोणार्क मंदिर विश्व के धरोहर स्थलों में से एक है। सूर्य मंदिर की कल्पना सूर्य के रथ के रूप में की गयी है।
जो बारह जोड़े विशालकाय पहियों से युक्त है। अगर हम इसको एक शब्द में कहें कि यह भारत की महत्तम विभूतियों में से एक है और यह कहना गलत भी नहीं होगा। सूर्य मंदिर का मुख सूर्य जिस तरफ (पूर्व की ओर) से उदित होता है उसी तरफ है। इस मंदिर के तीन प्रधान अंग हैं – देउल (गर्भगृह), जगमोहन (मंडप) और नाटमंड।
स्थापित देवता: सूर्य देव
स्थान: कोणार्क, उड़ीसा
स्थापक: साम्ब
स्थापित समय: तेरहवीं (13वीं) सदी
18. शनि शिंगणापुर मंदिर, महाराष्ट्र
हिन्दू धर्म के अनुसार भगवान शनि को शास्त्रों और ग्रहों में एक अलग तरह का महत्व दिया गया है, जिनमें इनका बहुत ही मूल्यवान योगदान पूजन होता है। भगवान शनि का एक सुप्रसिद्ध मंदिर महाराष्ट्र के अहमदनगर में स्थित है, जिन्हें लोग शनि शिंगणापुर मंदिर के नाम से जानते हैं।
भगवान शनि शिंगणापुर की मूर्ति 5 फुट 9 इंच ऊँची व 1 फुट 6 इंच चौड़ी है। भगवान शनि शिंगणापुर की मूर्ति संगमरमर के एक बड़े से चबूतरे पर खुले आसमान के नीचे धूप में विराजमान है। तीन हजार जनसंख्या वाले शिंगणापुर ग्राम में किसी भी घर में दरवाजा नहीं है।
यहाँ कभी भी किसी घर में कुंडी अथवा ताले का उपयोग नहीं किया गया है। हिन्दू धर्मों में इसका किसी पर प्रभाव दुर्भाग्य के रूप में माना जाता है। इसलिए लोग शनि को शनिवार के दिन सरसों का तेल अर्पित करते हैं। कहा जाता है कि इनके दर्शन के बाद वापस आते समय पीछे मुड़कर मूर्ति को नहीं देखना चाहिए। वैसे शनि देव सूर्य देव के पुत्र हैं।
स्थापित देवता: शनि देव
स्थान: अहमदनगर, महाराष्ट्र
स्थापक: अज्ञात
स्थापित समय: अज्ञात
19. मीनाक्षी सुन्दरेश्वर मंदिर, तमिलनाडु
मीनाक्षी सुन्दरेश्वर मंदिर तमिलनाडु के मदुरै नदी के दक्षिण भाग पर स्थित है। मीनाक्षी सुन्दरेश्वर मंदिर को मीनाक्षी अम्मां मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। यह भगवान शिव और उनकी भार्या अर्थात उनकी धर्मपत्नी का मंदिर है। वह मंदिर में उनकी आँखें मछली के जैसी हैं, मछली से मीनाक्षी का तात्पर्य है, इसलिए वह मंदिर मीनाक्षी मंदिर से जाना जाता है।
वर्ष 1623 और 1655 के बीच निर्मित इस मंदिर को अद्भुत कलाओं से लोग मोहित हो जाते हैं। कहा जाता है कि यह देवी पार्वती के जन्म का पवित्र स्थान है और इसके लिए भगवान शिव ने श्रद्धांजलि देने हेतु निर्मित किया था। यह मंदिर देवी पार्वती के पवित्र स्थानों में मुख्य माना जाता है। इस मंदिर की भव्यता हजारों पर्यटकों को रोजाना यहाँ खींच लाती है।
।। कांची तु कामाक्षी,
मदुरै मीनाक्षी,
दक्षिणे कन्याकुमारी ममः
शक्ति रूपेण भगवती,
नमो नमः नमो नमः।।
स्थापित देवता: सुन्दरेश्वर (शिव) एवं मीनाक्षी (पार्वती)
स्थान: मदुरै, तमिलनाडु
स्थापक: पाण्ड्या राजा
स्थापित समय: 17वीं शताब्दी
20. मल्लिकार्जुन स्वामी मंदिर, श्रीशैलम
श्रीशैलम शहर में कृष्णा नदी के तट पर स्थित मल्लिकार्जुन स्वामी मंदिर बहुत ही प्रसिद्ध है। विजय नगर के महाराजा हरिहर राय द्वारा इस मंदिर का निर्माण करवाया गया था। इसकी मानने की भावना को 6वीं शताब्दी से हृदयकृत किया गया।
हिन्दू धार्मिक कथानुसार यहाँ निवास करने वाले महर्षि सेडी ने केवल शिव की पूजा की और देवी पार्वती की नहीं, जिससे पार्वती जी ने इन्हें श्राप दिया कि वो आजीवन खड़े रहें। भगवान शिव ने इस विविधता को देखते हुए ऋषि को एक तीसरा पैर प्रदान किया ताकि उन्हें खड़े होने में कोई तकलीफ न हो। नल्लामाला पहाड़ियों पर स्थित इस मंदिर की सभी दीवारों पर इस कथा के गठन का चित्र बनाया गया है।
स्थापित देवता: मल्लिकार्जुन स्वामी (शिव)
स्थान: श्रीशैलम, आंध्र प्रदेश
स्थापक: महाराजा हरिहर राय
स्थापित समय: 6वीं शताब्दी
21. भीमाशंकर मंदिर, पुणे
भीमाशंकर मंदिर भोरगिरि गांव खेड़ से 50 किलोमीटर उत्तर-पश्चिम, पुणे से 110 किलोमीटर दूरी में स्थित है। सह्याद्री पहाड़ियों से घिरा हुआ यह मंदिर भगवान शिव के 12वें ज्योतिर्लिंग का एक मंदिर है। वन्यजीव और अभयारण्य का पदाधिकार अभी हाल ही के समय में इस मंदिर को प्रदान किया गया है।
13वीं शताब्दी में इस मंदिर की स्थापना की गयी थी। यह वास्तुकलाओं और नागा के लिए मशहूर है। 3,250 फीट की ऊँचाई पर स्थित भीमाशंकर मंदिर का शिवलिंग काफी मोटा है। इस मंदिर को मोटेश्वरनाथ के नाम से भी जाना जाता है।
स्थापित देवता: मोटेश्वरनाथ (शिव)
स्थान: पुणे, महाराष्ट्र
स्थापक: अज्ञात
स्थापित समय: अति प्राचीन
22. प्रेम मंदिर, वृंदावन
विशालकाय और भव्यता से परिपूर्ण यह मंदिर स्नेह की वजह से प्रसिद्ध है। यह मंदिर उत्तर प्रदेश के मथुरा जिले के वृंदावन नामक स्थान पर है। यह मंदिर 54 एकड़ में बना है और इसकी ऊँचाई 125 फुट तथा लंबाई 122 फुट और चौड़ाई 115 फुट है। जगद्गुरु कृपालु जी महाराज ने इस मंदिर को सन 2001 में एक धार्मिक स्थल के रूप में बनवाया था।
जिसे राधा कृष्ण और सीता राम को अर्पित किया था। मंदिर की दीवारों और अन्य भागों पर भगवान श्री कृष्ण के बचपन के लीलाओं का चलचित्र बनाया गया है, जैसे उनका गोवर्धन पर्वत उठाना, कालिया नाग के साथ अठखेलियाँ करना आदि। इस मंदिर को बनाने में 11 वर्ष लगे थे, जिसमें कुल 150 करोड़ रुपये से अधिक के खर्चे आए थे। इस मंदिर की प्रकाश व्यवस्था ऐसी है कि मानो यहाँ रात में आसमान से सितारे आकर चमकते हैं। यह मंदिर प्यार का एक चिन्ह है।
स्थापित देवता: राधा कृष्ण
स्थान: वृंदावन, उत्तर प्रदेश
स्थापक: जगद्गुरु कृपालु जी महाराज
स्थापित समय: 2001 में पूर्ण हुआ
23. त्र्यम्बकेश्वर मंदिर, नासिक
भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है, यह त्र्यम्बकेश्वर मंदिर। यह महाराष्ट्र के नासिक में स्थित ब्रह्मगिरि नाम के पर्वत पर गोदावरी नदी के तट पर स्थित है। मराठाओं के तीसरे पेशवा बालाजी अर्थात नाना साहब पेशवा ने सन 1755 में ही इस मंदिर की शुभारंभ कर दिया था।
पूरे 31 साल बाद जाकर इस मंदिर को सन 1786 में पूर्ण रूप से निर्मित कर दिया गया। गोदावरी नदी के किनारे बसा यह त्र्यम्बकेश्वर मंदिर काले-काले पत्थरों से बना है। त्र्यम्बकेश्वर मंदिर क्लासिक वास्तुकलाओं को प्रकाशित करता है। उस समय में इस मंदिर के निर्माण में करीब-करीब 16 लाख रुपये खर्च किए गए थे, जो उस समयानुसार बहुत बड़ा महत्वपूर्ण रकम था।
त्र्यंबक शहर इस पृथ्वी पर स्वर्ग का अनुभव करता है। यहाँ की यात्रा ज्ञान, स्वतंत्रता और आध्यात्मिकता के भावों की अनुभूति करती है।
स्थापित देवता: त्र्यम्बकेश्वर (शिव)
स्थान: नासिक, महाराष्ट्र
स्थापक: नाना साहब पेशवा
स्थापित समय: 18वीं शताब्दी
24. श्रीनाथजी मंदिर, नाथद्वारा
भगवान श्री कृष्ण जी के अवतार श्रीनाथ जी का मंदिर राजस्थान के नाथद्वारा नामक जगह पर स्थापित है। मशहूर शहर उदयपुर से 48 किमी की दूरी पर बनास नामक नदी के तट पर स्थापित है। यह मंदिर देवताओं के शृंगार के लिए प्रसिद्ध है। यहाँ मूर्ति को रोजाना अलग-अलग पोशाक पहनाए जाते हैं, जिन्हें देख लोग मोहित हो जाते हैं।
इस मंदिर को वृंदावन के नंद महाराज के मंदिर को देखते हुए ठीक उसी प्रकार से बनाया गया है। इस मंदिर को नंद भवन या नंदालय के नाम से भी जाना जाता है। मंदिर के अंदर अनेक प्रकार के त्योहार मनाए जाते हैं जैसे श्री कृष्ण जन्माष्टमी, होली, दीपावली आदि। अगर आप यहाँ यात्रा करने आते हैं तो आपको धरती पर स्वर्ग का अनुभव प्रदान होगा।
स्थापित देवता: श्री कृष्ण
स्थान: नाथद्वारा, राजस्थान
स्थापक: मेवाड़ के राणा
स्थापित समय: 17वीं शताब्दी
25. महाबोधि मंदिर, बोधगया
भगवान गौतम बुद्ध ने जहाँ पर आत्मज्ञान प्राप्त किया था, यह मंदिर उसी जगह पर स्थापित को संकेत रूप से संकेत देता है। महाबोधि मंदिर बिहार के बोधगया नामक शहर में स्थित है। भगवान बुद्ध के स्थलों में से यह एक बहुत महत्वपूर्ण स्थल है। महाबोधि मंदिर 4.8 हेक्टेयर के क्षेत्रफल में फैला हुआ है जो कि 55 मीटर की लंबाई में है।
पवित्र बौद्ध विहार मंदिर के बाएँ तरफ स्थित है यह महाबोधि मंदिर। यहाँ एक वृक्ष है जिसके नीचे भगवान गौतम बुद्ध ने आत्म शक्ति को जगा कर आत्म ज्ञान प्राप्त किया था। इस मंदिर में इतनी शांति और सुगमता है, साथ ही यहाँ की वास्तुकलाएँ आपको मंत्रमुग्ध कर लेंगी। इस मठ का निर्माण 1934 ई. में हुआ था।
स्थापित देवता: गौतम बुद्ध
स्थान: बोधगया, बिहार
स्थापक: अज्ञात
स्थापित समय: 1934 ई०
26. लिंगराज मंदिर, भुवनेश्वर
भगवान शिव के प्राचीन मंदिरों में से एक है लिंगराज का मंदिर जो भुवनेश्वर नामक शहर में स्थित है। लिंगराज मंदिर को ललाटेंडुकेसरी ने 617-657 ई. में निर्मित करवाया था। हिन्दू धार्मिक कथाओं की मानें तो ‘लिट्टी’ तथा ‘वसा’ नाम के दो भयंकर राक्षसों का देवी पार्वती ने इसी जगह पर वध किया था।
यहीं पास में लिंगराज का भव्य मंदिर और बिंदुसागर सरोवर भी स्थित है। इस मंदिर की दीवारों पर भगवान विष्णु के चित्र भी दर्शित किए गए हैं। शिवरात्रि के दिन यहाँ लाखों में भीड़ उमड़ती है। लिंगराज मंदिर की शिल्पकलाएँ सम्पूर्ण विश्व में प्रसिद्ध हैं।
स्थापित देवता: शिव
स्थान: भुवनेश्वर, उड़ीसा
स्थापक: ललाटेंडुकेसरी
स्थापित समय: 7वीं शताब्दी
27. कामाख्या मंदिर, गुवाहाटी
दिसपुर जो असम की राजधानी है, वहाँ से 7 किलोमीटर की दूरी पर स्थित गुवाहाटी नामक शहर से 10 किलोमीटर दूर नीलाचल नाम के पर्वत पर कामाख्या मंदिर विराजमान है। यह देश के 51 महाशक्तिपीठों में से एक है जो 4 शक्तिपीठों में मुख्य महत्व रखता है।
कामाख्या मंदिर की देवी को इच्छा की देवी रूप में माना जाता है। तंत्र, मंत्र और कामाक्षी की भावना पर विश्वास रखने वाले लोग कामाख्या देवी की पूजा करने यहाँ आते हैं। हवा फूँक और काली आत्माओं को यहाँ पूजित किया जाता है, जो सदियों से चला आ रहा है।
स्थापित देवता: कामाख्या
स्थान: गुवाहाटी, असम
स्थापक: म्लेच्छ वंश के राजा, पुनर्निर्माण: राजा नर नारायण
स्थापित समय: 8वीं-17वीं सदी तक
28. ओंकारेश्वर मंदिर, मध्यप्रदेश
यह मंदिर मध्य प्रदेश के खंडवा जनपद के मध्यप्रदेश में स्थित है। यह शिवपुरी नाम के एक द्वीप पर स्थित है जो नर्मदा नदी के मध्य में स्थित है। यह मंदिर ॐ आकार आकलन पर बना हुआ है। यहाँ दो मंदिर हैं जो ॐकारेश्वर और ममलेश्वर हैं।
कहा जाता है कि ठंडक के मौसम में मध्यप्रदेश जो केदारनाथ की मूर्ति है उसे ऊखीमठ में लाया जाता है। 6 माह उस मूर्ति की यहाँ पर पूजा होती है और पुनः उसी स्थान पर पहुँचा दिया जाता है। लोगों का ऐसा कहना है कि जो यहाँ मन्नत माँगता है वो खाली हाथ वापस नहीं जाता, उसकी मनोकामना जरूर पूरी होती है। मंदिर की चार दीवारों के अंदर जो जल है उसे बड़ा ही पवित्र माना जाता है।
स्थापित देवता: शिव
स्थान: खंडवा, मध्य प्रदेश
स्थापक: अज्ञात
स्थापित समय: अज्ञात
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